बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना का कार्य
3
1 उन्ही दिनों यहूदिया के बियाबान मरुस्थल में उपदेश देता हुआ बपतिस्मा देने वाला यूहन्ना वहाँ आया।
2 वह प्रचार करने लगा, “मन फिराओ! क्योंकि स्वर्ग का राज्य आने को है।”
3 यह यूहन्ना वही है जिसके बारे में भविष्यवक्ता यशायाह ने चर्चा करते हुए कहा था:
“जंगल में एक पुकारने वाले की आवाज है:
‘प्रभु के लिए मार्ग तैयार करो
और उसके लिए राहें सीधी करो।’” यशायाह 40:3
4 यूहन्ना के वस्त्र ऊँट की ऊन के बने थे और वह कमर पर चमड़े की पेटी बाँधे था। टिड्डियाँ और जँगली शहद उसका भोजन था।
5 उस समय यरूशलेम, समूचे यहूदिया क्षेत्र और यर्दन नदी के आसपास के लोग उसके पास आ इकट्ठे हुए।
6 उन्होंने अपने पापों को स्वीकार किया और यर्दन नदी में उन्हें उसके द्वारा बपतिस्मा दिया गया।
7 जब उसने देखा कि बहुत से फ़रीसी और सदूकी उसके पास बपतिस्मा लेने आ रहे हैं तो वह उनसे बोला, “ओ, साँप के बच्चों! तुम्हें किसने चेता दिया है कि तुम प्रभु के भावी क्रोध से बच निकलो?
8 तुम्हें प्रमाण देना होगा कि तुममें वास्तव में मन फिराव हुआ है।
9 और मत सोचो कि अपने आप से यह कहना ही काफी होगा कि ‘हम इब्राहीम की संतान हैं।’ मैं तुमसे कहता हूँ कि परमेश्वर इब्राहीम के लिये इन पत्थरों से भी बच्चे पैदा करा सकता है।
10 पेड़ों की जड़ों पर कुल्हाड़ा रखा जा चुका है। और हर वह पेड़ जो उत्तम फल नहीं देता काट गिराया जायेगा और फिर उसे आग में झोंक दिया जायेगा।
11 “मैं तो तुम्हें तुम्हारे मन फिराव के लिये जल से बपतिस्मा देता हूँ किन्तु वह जो मेरे बाद आने वाला है, मुझ से महान है। मैं तो उसके जूतों के तस्मे खोलने योग्य भी नहीं हूँ। वह तुम्हें पवित्र आत्मा और अग्नि से बपतिस्मा देगा।
12 उसके हाथों में उसका छाज है जिस से वह अनाज को भूसे से अलग करता है। अपने खलिहान से वह साफ किये समस्त अनाज को उठा, इकट्ठा कर, कोठियों में भरेगा और भूसे को ऐसी आग में झोंक देगा जो कभी बुझाए नहीं बुझेगी।”
यीशु का यूहन्ना से बपतिस्मा लेना
13 उस समय यीशु गलील से चल कर यर्दन के किनारे यूहन्ना के पास उससे बपतिस्मा लेने आया।
14 किन्तु यूहन्ना ने यीशु को रोकने का यत्न करते हुए कहा, “मुझे तो स्वयं तुझ से बपतिस्मा लेने की आवश्यकता है। फिर तू मेरे पास क्यों आया है?”
15 उत्तर में यीशु ने उससे कहा, “अभी तो इसे इसी प्रकार होने दो। हमें, जो परमेश्वर चाहता है उसे पूरा करने के लिए यही करना उचित है।” फिर उसने वैसा ही होने दिया।
16 और तब यीशु ने बपतिस्मा ले लिया। जैसे ही वह जल से बाहर निकला, आकाश खुल गया। उसने परमेश्वर की आत्मा को एक कबूतर की तरह नीचे उतरते और अपने ऊपर आते देखा।
17 तभी यह आकाशवाणी हुई: “यह मेरा प्रिय पुत्र है। जिससे मैं अति प्रसन्न हूँ।”
यीशु की परीक्षा
4
1 फिर आत्मा यीशु को जंगल में ले गई ताकि शैतान के द्वारा उसे परखा जा सके।
2 चालीस दिन और चालीस रात भूखा रहने के बाद जब उसे भूख बहुत सताने लगी
3 तो उसे परखने वाला उसके पास आया और बोला, “यदि तू परमेश्वर का पुत्र है तो इन पत्थरों से कहो कि ये रोटियाँ बन जायें।”
4 यीशु ने उत्तर दिया, “शास्त्र में लिखा है,
‘मनुष्य केवल रोटी से ही नहीं जीता
बल्कि वह प्रत्येक उस शब्द से जीता है जो परमेश्वर के मुख से निकालता है।’” व्यवस्थाविवरण 8:3
5 फिर शैतान उसे यरूशलेम के पवित्र नगर में ले गया। वहाँ मन्दिर की सबसे ऊँची बुर्ज पर खड़ा करके
6 उसने उससे कहा, “यदि तू परमेश्वर का पुत्र है तो नीचे कूद पड़ क्योंकि शास्त्र में लिखा है:
‘वह तेरी देखभाल के लिये अपने दूतों को आज्ञा देगा
और वे तुझे हाथों हाथ उठा लेंगे
ताकि तेरे पैरों में कोई पत्थर तक न लगे।’” भजन संहिता 91:11-12
7 यीशु ने उत्तर दिया, “किन्तु शास्त्र यह भी कहता है,
‘अपने प्रभु परमेश्वर को परीक्षा में मत डाल।’” व्यवस्थाविवरण 6:16
8 फिर शैतान यीशु को एक बहुत ऊँचे पहाड़ पर ले गया। और उसे संसार के सभी राज्य और उनका वैभव दिखाया।
9 शैतान ने तब उससे कहा, “ये सभी वस्तुएँ मैं तुझे दे दूँगा यदि तू मेरे आगे झुके और मेरी उपासना करे।”
10 फिर यीशु ने उससे कहा, “शैतान, दूर हो! शास्त्र कहता है:
‘अपने प्रभु परमेश्वर की उपासना कर
और केवल उसी की सेवा कर!’” व्यवस्थाविवरण 6:13
11 फिर शैतान उसे छोड़ कर चला गया और स्वर्गदूत आकर उसकी देखभाल करने लगे।
यीशु के कार्य का आरम्भ
12 यीशु ने जब सुना कि यूहन्ना पकड़ा जा चुका है तो वह गलील लौट आया।
13 परन्तु वह नासरत में नहीं ठहरा और जाकर कफरनहूम में, जो जबूलून और ली के क्षेत्र में गलील की झील के पास था, रहने लगा।
14 यह इसलिए हुआ कि परमेश्वर ने भविष्यवक्ता यशायाह के द्वारा जो कहा, वह पूरा हो:
15 “जबूलून और नपताली के देश
सागर के रास्ते पर, यर्दन नदी के पश्चिम में,
ग़ैर यहूदियों के देश गलील में।
16 जो लोग अँधेरे में जी रहे थे
उन्होंने एक महान ज्योति देखी
और जो मृत्यु की छाया के देश में रहते थे उन पर,
ज्योति के प्रभात का एक प्रकाश फैला।” यशायाह 9:1-2
17 उस समय से यीशु ने सुसंदेश का प्रचार शुरू कर दिया: “मन फिराओ! क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट है।”
यीशु द्वारा शिष्यों का चुना जाना
18 जब यीशु गलील की झील के पास से जा रहा था उसने दो भाईयों को देखा शमौन (जो पतरस कहलाया) और उसका भाई अंद्रियास। वे झील में अपने जाल डाल रहे थे। वे मछुआरे थे।
19 यीशु ने उनसे कहा, “मेरे पीछे चले आओ, मैं तुम्हें सिखाऊँगा कि लोगों के लिये मछलियाँ पकड़ने के बजाय मनुष्य रूपी मछलियाँ कैसे पकड़ी जाती हैं।”
20 उन्होंने तुरंत अपने जाल छोड़ दिये और उसके पीछे हो लिये।
21 फिर वह वहाँ से आगे चल पड़ा और उसने देखा कि जब्दी का बेटा याकूब और उसका भाई यूहन्ना अपने पिता के साथ नाव में बैठे अपने जालों की मरम्मत कर रहे हैं। यीशु ने उन्हें बुलाया।
22 और वे तत्काल नाव और अपने पिता को छोड़कर उसके पीछे चल दिये।
यीशु का लोगों को उपदेश और उन्हें चंगा करना
23 यीशु समूचे गलील क्षेत्र में यहूदी आराधनालयों में स्वर्ग के राज्य के सुसमाचार का उपदेश देता और हर प्रकार के रोगों और संतापों को दूर करता घूमने लगा।
24 समस्त सीरिया देश में उसका समाचार फैल गया। इसलिये लोग ऐसे सभी व्यक्तियों को जो संतापी थे, या तरह तरह की बीमारियों और वेदनाओं से पीड़ित थे, जिन पर दुष्टात्माएँ सवार थीं, जिन्हें मिर्गी आती थी और जो लकवे के मारे थे, उसके पास लाने लगे। यीशु ने उन्हें चंगा किया।
25 इसलिये गलील, दस नगर, यरूशलेम, यहूदिया और यर्दन नदी पार के लोगों की बड़ी बड़ी भीड़ उसका अनुसरण करने लगी।